हिंदी कविताएं

कभी कुछ यूं ही बस यूं ही रहने दो

कभी कुछ यूं ही गुजर जाने दो,उन खामोश लम्हों को, बस मुस्कुराने दो।उसके दर्द को न छेड़ो,वो भी अपना हिसाब रखता है,उसे अपनी धड़कनों में बस थोड़ी राहत पाने दो। उसकी चाहतें भी उसकी हैं,जैसे तिनके की खोज में पंछी का बसेरा है।वो भी अपनी उम्मीदों के सफर में है,जहाँ हर मोड़ पर उसके सपने […]

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सोचो कि बरसात में तुम हो

सोचो कि बरसात में तुम हो,मानो कुछ अपने आप में गुम हो,तपती हुई सर्द हवाओं में,इन घनघोर जुल्फ के बादलों में,तू मेरे पास, और पास,जैसे बारिश की बूंदें हों आस-पास।तू थम-थम के कहे कुछ बातें,बीते यूँ ही अरमानों की रातें। तू मुस्कुराए, मैं खो जाऊँ,तेरी चाहतों को को अपनी प्यास बनाऊँ।तेरी आंखों में देखूँ वो

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मुझे अपने प्यार का कोई न कोई रंग दिखता है

तू भी अजीब है, ऐ स्टॉक मार्केट मेरी जान,कभी तू हंसा देती है, कभी तू रुला जाती है,तेरे उठते-गिरते भावों में,जैसे दिल की धड़कनें खो जाती हैं। तू कभी पास आती है, तो लगता है जैसे जीत ली दुनिया,फिर अचानक दूर हो जाती है, जैसे तोड़ दी हर एक ख़ुशी।तेरे साथ की चाहत में,मैं खो

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चलो हम खो जाएँ, दूर कहीं, न जाने कहाँ, न जाने कोई

चलो हम खो जाएँ, दूर कहीं,न जाने कहाँ, न जाने कोई,तेरी बाँहों में, मेरे ख्वाबों की दुनिया हो,जहाँ सिर्फ़ हम हों, और न कोई। वो घने जंगल, वो ठंडी हवा,चाँदनी रात की सुनहरी छाया,तुम्हारे साथ चलूँ मैं बेखबर,हर रास्ता लगे जैसे सजी हुई माया। ना कोई मंजिल, ना कोई राह,बस तुम और मैं, और ये

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ठीक ही सब है

ठीक ही सब है: वो दिखती रहे बस दूर से ही सही,मुलाकातें चाहे कम हो या हो नहीं।उसकी शामों को मेरे कांधे का सहारा हो,उसका आंसू बस मेरी आखिरी गंगा की धारा हो। वो मुस्कुराए दूर से ही सही, ये काफी है,उसकी हंसी में मेरी जिंदगी की रौशनी छुपी है।उसकी खुशियों में मेरी खुशियों का

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माँ फिर याद आती है

उसकी ममता की छाँव में,हर दुःख का हल मिल जाता था।उसकी गोद में सिर रखकर,सारा जग भूल जाता था। वो प्यार भरी बातें उसकी,दिल को सुकून दे जाती हैं।उसके बिना ये दुनिया जैसे,सपनों में बसी परछाईं है। कभी हंसाती, कभी रुलाती,उसकी यादें बहुत तड़पाती हैं।माँ के बिना ये जीवन जैसे,बसंत में पतझड़ और रुसवाई है।

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मन मीत सखा

उंगली पकड़कर मेरी, ले जाते अपने संग, जीवन के हर मोड़ पर, भर देते एक नई उमंग। सुनियोजित, सुकुमार ज्येष्ठ, हैं वो परम् सुहृदय श्रेष्ठ, चारों तरफ फैलाया सौरभ, बढ़ गया है कुल का गौरव। दृढ़ निश्चयी, बन आदर्श, सींचे मन, बन प्रेम कलश, दिखा के इक राह नयी, वंचित कर हर एक प्रकश। भ्राता

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दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर।

दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर, शत सहस्र पर, थमे नहीं यह, कोटि वंदन, वंदना कर… दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर। गीत ऐसा, लिख दिया है, हम सदा, गाते रहेंगे, स्वार्थ अपना, भूलकर सब, राष्ट्रधुन बस, गाते चलेंगे। सीख ऐसी, दी है हमको, हम

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मैं अब भी तो अकेला हूं

मैं तब भी तो अकेला था, मैं अब भी तो अकेला हूं। थे जब दिन खेलने के, दिखाते अपनी बाल शरारतें, इतराते, अठखेलियां करते, हंसते बचपन के बीच, मैं तब भी तो अकेला था, मैं अब भी तो अकेला हूं। यौवन के दहलीज पर, रखे थे जब कदम अपने, अदम्य साहस की हुंकार से, सब

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ओ किशन! कहां छुपे हो?

होली तो एक बहाना है, तुझे रंग लगाने का, अपने अंदर के नटखट, कान्हा को जगाने का, घट घट देखूं राह तेरी, दर्शन को तरसे नैन हृत मन अगन ऐसी लगी मीरा मैं जोगन बनी। अब तो अवसर आ गया, छूने तेरे गालों को, राधा बन झूमें मन, प्रेम रंग लगाने को। ओ किशन! कहां

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