हिंदी कविताएं

हो उदास, मन हतोत्साहित

हो उदास, मन हतोत्साहित, जीवन लगे दूभर कण्टित, चाह न हो, कुछ भी जीवन में, खो जाएं जब, अंधियारे वन में। पाठ करो तुम, गीत मनोहर, गान करो तुम, गीत सरोवर, श्रेष्ठ गीत ये कृष्णमुखी, करे सफल, सर्वस्व सुखी। अंधियारे वन में जलकर, मार्ग दिखाए, दीप उज्ज्वल, उमंग भर दे, जीवंत कर दे, कण्टक, कंकड़, […]

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गीतामय जीवन कर दो

हो उदास, मन हतोत्साहित, जीवन लगे दूभर कण्टित, चाह न हो, कुछ भी जीवन में, खो जाएं जब, अंधियारे वन में। पाठ करो तुम, गीत मनोहर, गान करो तुम, गीत सरोवर, श्रेष्ठ गीत ये कृष्णमुखी, करे सफल, सर्वस्व सुखी। अंधियारे वन में जलकर, मार्ग दिखाए, दीप उज्ज्वल, उमंग भर दे, जीवंत कर दे, कण्टक, कंकड़,

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स्मृति रूपी प्राण सुकृति की

ओ प्रिये! हर श्वास में मेरी, तुम ही तो बसी हो। हर निःश्वास में पुकारूँ तुझे, हर प्रश्वास में बातें हो तुझसे, बातें न हो पाई आज प्रत्यक्ष, उदास न हो तुम, जल्द आऊंगा तुम्हारे समक्ष, असीमित बातें होंगी, असीमित यादें होंगी। हृदय मेरा, स्पन्दन करता रहेगा तब तक, स्मृति रूपी प्राण सुकृति की,  संचरण

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तुम बिन, मैं व्यर्थ

 मैं शब्द, तुम मेरा अर्थ, तुम बिन, मैं व्यर्थ। तुम कारण, मैं ज्ञात, कारण बिना, कार्य अज्ञात। कार्य मैं, तुम कर्ता, संज्ञान मैं, तुम धर्ता। व्यक्त मैं, तुम तदर्थ, तुम बिन, मैं व्यर्थ। मैं चक्षु, तुम दृश्य, मैं रसना, तुम रस्य, मैं घ्राण, तुम सुगंध, मैं चर्म, तुम त्वच्य। मैं प्रारूप, तुम सुकृत, तुम अनादि,

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बातें जुबां पे, क्यूं आती नहीं हैं…?

बातें जुबां पे, क्यूं आती नहीं हैं, दिल बोले जितना, बताती नहीं हैं, कैसे करुं मैं, बयां दिल की बातें, एहसास भी अब, जताती नहीं हैं। दिल में बसी है, ये सूरत तुम्हारी, मन में रमी है, ये मूरत तुम्हारी, आंखें करुं बंद, जब मिलना हो तुमसे, बातें हो जाती, हमारी तुम्हारी। समझ गए सब,

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बोल कन्हैया जो जी चाहे

क्यों री राधा, फिर एक बार तूने, धड़कनों को मेरी, बेकाबू क्यूं किया? सुन… ये धड़कन, घुमड़े जैसे बदरा, काली घटा केशों के, छेड़े है राग नया मल्हार, चाहे… हो जाए बारिश, तरसे प्यासा मन मेरा। नयनों को मेरे थोड़ा, अब कर लेने दो आराम, नयनों को तेरे ये, देखें यूं बेलगाम। कजरा ने भी

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प्यारा एक सपना सा

जब हो दिल उदास, कोई हो इतना पास, जो हो अपना सा, प्यारा एक सपना सा। पढ़े दिल, अनकही बातों में, लिखीं हों, जो आंखों में, मिले कोई अपना सा, प्यारा एक सपना सा। क्या करूं, इन आंखों का, उमड़े सैलाब, जज्बातों का, छलक जाते हैं कभी भी, बे मौसम बरसातों सा। देखो, इन आंखों

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बस चाहा है ये, ज्यादा तो नहीं

सुबह हो जब, तेरी आंखें खुले, मिलकर गले, मेरी नींद खुले, ऐ हमदम मेरे, ओ साथी मेरे, बस चाहा है ये, ज्यादा तो नहीं। हांथो से अपने, लट जो संवारा, कानों के पीछे, वो चिलमन से झांके, बांध के जूड़ा, लगे मन को फिर ये, कि बांधा है तूने, कोई भंवरा आवारा, साड़ी के पल्लू

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ये बारिश की बूंदें

ये बारिश की बूंदें, क्यूं नम हैं ये आंखें, दिखता नहीं वो, ये दिल जिसको चाहे। टिप टिप ये गिरता, लगे जैसे रिमझिम, ये बारिश की बूंदें, क्यूं नम हैं ये आंखें। जो न मिले तुम, तो जी भर के रोऊं, अगर मिल गए तुम, तो बंद हों ये बारिश। खुला है ये मौसम, खिली

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पर तुम न मिले

ये खुला आसमान, ये धुली सी जमीन, खिली धूप अभी, पर तुम न मिले। बादलों ने फिर छुपकर, फुहारों से भिगोया है, लगा प्यारा ये तुमसा, पर तुम न मिले। पत्ते फिर हिले हैं, फूल बन दिल खिले हैं,  पतझड़ बीत गया अब, पर तुम न मिले। कितने सावन बीत गए, रिमझिम बूंदें मीत बने,

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