थक गया अब मैं
प्रेम बाँटते-बाँटते,
प्रार्थना है प्रभु,
आ जाओ अब तुम।
दिन-रात के इस
अनवरत दान में,
कहीं खो गया हूँ मैं
खुद के ही ज्ञान में।
आ जाओ
ओ मेरी अश्रांत व्यथा के पार,
अपने करुणामय स्पर्श से
कृपा की फुहार डाल दो।
जब-जब डगमगाई हैं
मेरी संवेदनाएँ,
तुम्हारे दिव्य प्रकाश से
रोशन हो जाएँ।
थक गया अब मैं
प्रेम बाँटते-बाँटते,
एक बूँद मुझे भी
प्रेम की पिला दो,
फिर खिल जाए
मुझमें विश्वास का फूल,
और सँवार दूँ जगत को
तुम्हारे ही अनुकूल।