ये खुला आसमान,
ये धुली सी जमीन,
खिली धूप अभी,
पर तुम न मिले।
बादलों ने फिर छुपकर,
फुहारों से भिगोया है,
लगा प्यारा ये तुमसा,
पर तुम न मिले।
पत्ते फिर हिले हैं,
फूल बन दिल खिले हैं,
पतझड़ बीत गया अब,
पर तुम न मिले।
कितने सावन बीत गए,
रिमझिम बूंदें मीत बने,
बादलों में तुमको देखा,
पर तुम न मिले।
लगे ये पल नया सा,
कशिश दिल में जगा सा,
सोचा अब मिलोगे,
पर तुम न मिले।
Well written and expressed
😊 thank you