हिंदी कविताएं

मन मीत सखा

उंगली पकड़कर मेरी, ले जाते अपने संग, जीवन के हर मोड़ पर, भर देते एक नई उमंग। सुनियोजित, सुकुमार ज्येष्ठ, हैं वो परम् सुहृदय श्रेष्ठ, चारों तरफ फैलाया सौरभ, बढ़ गया है कुल का गौरव। दृढ़ निश्चयी, बन आदर्श, सींचे मन, बन प्रेम कलश, दिखा के इक राह नयी, वंचित कर हर एक प्रकश। भ्राता […]

मन मीत सखा Read More »

दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर।

दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर, शत सहस्र पर, थमे नहीं यह, कोटि वंदन, वंदना कर… दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर। गीत ऐसा, लिख दिया है, हम सदा, गाते रहेंगे, स्वार्थ अपना, भूलकर सब, राष्ट्रधुन बस, गाते चलेंगे। सीख ऐसी, दी है हमको, हम

दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर। Read More »

मैं अब भी तो अकेला हूं

मैं तब भी तो अकेला था, मैं अब भी तो अकेला हूं। थे जब दिन खेलने के, दिखाते अपनी बाल शरारतें, इतराते, अठखेलियां करते, हंसते बचपन के बीच, मैं तब भी तो अकेला था, मैं अब भी तो अकेला हूं। यौवन के दहलीज पर, रखे थे जब कदम अपने, अदम्य साहस की हुंकार से, सब

मैं अब भी तो अकेला हूं Read More »

ओ किशन! कहां छुपे हो?

होली तो एक बहाना है, तुझे रंग लगाने का, अपने अंदर के नटखट, कान्हा को जगाने का, घट घट देखूं राह तेरी, दर्शन को तरसे नैन हृत मन अगन ऐसी लगी मीरा मैं जोगन बनी। अब तो अवसर आ गया, छूने तेरे गालों को, राधा बन झूमें मन, प्रेम रंग लगाने को। ओ किशन! कहां

ओ किशन! कहां छुपे हो? Read More »

हो उदास, मन हतोत्साहित

हो उदास, मन हतोत्साहित, जीवन लगे दूभर कण्टित, चाह न हो, कुछ भी जीवन में, खो जाएं जब, अंधियारे वन में। पाठ करो तुम, गीत मनोहर, गान करो तुम, गीत सरोवर, श्रेष्ठ गीत ये कृष्णमुखी, करे सफल, सर्वस्व सुखी। अंधियारे वन में जलकर, मार्ग दिखाए, दीप उज्ज्वल, उमंग भर दे, जीवंत कर दे, कण्टक, कंकड़,

हो उदास, मन हतोत्साहित Read More »

गीतामय जीवन कर दो

हो उदास, मन हतोत्साहित, जीवन लगे दूभर कण्टित, चाह न हो, कुछ भी जीवन में, खो जाएं जब, अंधियारे वन में। पाठ करो तुम, गीत मनोहर, गान करो तुम, गीत सरोवर, श्रेष्ठ गीत ये कृष्णमुखी, करे सफल, सर्वस्व सुखी। अंधियारे वन में जलकर, मार्ग दिखाए, दीप उज्ज्वल, उमंग भर दे, जीवंत कर दे, कण्टक, कंकड़,

गीतामय जीवन कर दो Read More »

स्मृति रूपी प्राण सुकृति की

ओ प्रिये! हर श्वास में मेरी, तुम ही तो बसी हो। हर निःश्वास में पुकारूँ तुझे, हर प्रश्वास में बातें हो तुझसे, बातें न हो पाई आज प्रत्यक्ष, उदास न हो तुम, जल्द आऊंगा तुम्हारे समक्ष, असीमित बातें होंगी, असीमित यादें होंगी। हृदय मेरा, स्पन्दन करता रहेगा तब तक, स्मृति रूपी प्राण सुकृति की,  संचरण

स्मृति रूपी प्राण सुकृति की Read More »

तुम बिन, मैं व्यर्थ

 मैं शब्द, तुम मेरा अर्थ, तुम बिन, मैं व्यर्थ। तुम कारण, मैं ज्ञात, कारण बिना, कार्य अज्ञात। कार्य मैं, तुम कर्ता, संज्ञान मैं, तुम धर्ता। व्यक्त मैं, तुम तदर्थ, तुम बिन, मैं व्यर्थ। मैं चक्षु, तुम दृश्य, मैं रसना, तुम रस्य, मैं घ्राण, तुम सुगंध, मैं चर्म, तुम त्वच्य। मैं प्रारूप, तुम सुकृत, तुम अनादि,

तुम बिन, मैं व्यर्थ Read More »

बातें जुबां पे, क्यूं आती नहीं हैं…?

बातें जुबां पे, क्यूं आती नहीं हैं, दिल बोले जितना, बताती नहीं हैं, कैसे करुं मैं, बयां दिल की बातें, एहसास भी अब, जताती नहीं हैं। दिल में बसी है, ये सूरत तुम्हारी, मन में रमी है, ये मूरत तुम्हारी, आंखें करुं बंद, जब मिलना हो तुमसे, बातें हो जाती, हमारी तुम्हारी। समझ गए सब,

बातें जुबां पे, क्यूं आती नहीं हैं…? Read More »

बोल कन्हैया जो जी चाहे

क्यों री राधा, फिर एक बार तूने, धड़कनों को मेरी, बेकाबू क्यूं किया? सुन… ये धड़कन, घुमड़े जैसे बदरा, काली घटा केशों के, छेड़े है राग नया मल्हार, चाहे… हो जाए बारिश, तरसे प्यासा मन मेरा। नयनों को मेरे थोड़ा, अब कर लेने दो आराम, नयनों को तेरे ये, देखें यूं बेलगाम। कजरा ने भी

बोल कन्हैया जो जी चाहे Read More »

Scroll to Top