चंदा (हिंदी कहानी सीरीज – अंतिम भाग)

चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 5) से आगे… कहानी शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 👉🏻 (चंदा कहानी सीरीज भाग – 1) इसका मतलब तुमने पापा को बता दिया हमारे बारे में? (चंदा ने हैरानी से पूछा) अरे अभी ये नहीं बताया हूं, वो मुझे पागल समझेंगे। मैं वहां ये पता करने गया था कि […]

चंदा (हिंदी कहानी सीरीज – अंतिम भाग) Read More »

प्यारा एक सपना सा

जब हो दिल उदास, कोई हो इतना पास, जो हो अपना सा, प्यारा एक सपना सा। पढ़े दिल, अनकही बातों में, लिखीं हों, जो आंखों में, मिले कोई अपना सा, प्यारा एक सपना सा। क्या करूं, इन आंखों का, उमड़े सैलाब, जज्बातों का, छलक जाते हैं कभी भी, बे मौसम बरसातों सा। देखो, इन आंखों

प्यारा एक सपना सा Read More »

बस चाहा है ये, ज्यादा तो नहीं

सुबह हो जब, तेरी आंखें खुले, मिलकर गले, मेरी नींद खुले, ऐ हमदम मेरे, ओ साथी मेरे, बस चाहा है ये, ज्यादा तो नहीं। हांथो से अपने, लट जो संवारा, कानों के पीछे, वो चिलमन से झांके, बांध के जूड़ा, लगे मन को फिर ये, कि बांधा है तूने, कोई भंवरा आवारा, साड़ी के पल्लू

बस चाहा है ये, ज्यादा तो नहीं Read More »

ये बारिश की बूंदें

ये बारिश की बूंदें, क्यूं नम हैं ये आंखें, दिखता नहीं वो, ये दिल जिसको चाहे। टिप टिप ये गिरता, लगे जैसे रिमझिम, ये बारिश की बूंदें, क्यूं नम हैं ये आंखें। जो न मिले तुम, तो जी भर के रोऊं, अगर मिल गए तुम, तो बंद हों ये बारिश। खुला है ये मौसम, खिली

ये बारिश की बूंदें Read More »

पर तुम न मिले

ये खुला आसमान, ये धुली सी जमीन, खिली धूप अभी, पर तुम न मिले। बादलों ने फिर छुपकर, फुहारों से भिगोया है, लगा प्यारा ये तुमसा, पर तुम न मिले। पत्ते फिर हिले हैं, फूल बन दिल खिले हैं,  पतझड़ बीत गया अब, पर तुम न मिले। कितने सावन बीत गए, रिमझिम बूंदें मीत बने,

पर तुम न मिले Read More »

एन्जॉय ही एन्जॉय

किताबों के पन्नों में, खो चुका हूं बचपन, कब करूंगा एन्जॉय, कैसी है ये उलझन। सोचा कि जब, पास होगा बारह, खूब करूंगा एन्जॉय, हर रात बजेंगे बारह। आ गया हूं कॉलेज, न रहा मैं बालक, आया मजा अब कितना, न टोकेंगे पालक। टूटा सपना, जब फिर से, कहती मम्मी न कर ये, पढ़ ले

एन्जॉय ही एन्जॉय Read More »

फिर भी ये मलाल क्यों?

यूं गुमशुम सा मैं, न था कभी, हूं आज बेबस, न था कभी, काश कि जीता, जी भरके मैं, न होता ऐसा, न था कभी। क्यूं मैंने, व्यर्थ किया, फ़ुरसत के वो पल, जिनपर था हक अपनों का, फिर न मिले वो कल। सोच मेरी थी इस पल में, कर दूं दो और काज, कल

फिर भी ये मलाल क्यों? Read More »

दो पतंग

कि बन पतंग, उड़ जाऊं मैं, खुले गगन के तले, देना ढील तुम हौले हौले, अपनी उंगलियों के तले। छू लेने दो, आसमा है पास, मन में कसक है जगी, लगे ये कितना खुशनुमा, ज़िन्दगी है यहीं। पड़े जो बूंदे बारिश की, लगे छू लूं इन बादलों को, बांध के पिया, प्रेम की डोर, कर

दो पतंग Read More »

यूं न मिलती मंजिल ऐसे

गिरता हूं, उठता हूं, गिर गिर कर फिर उठता हूं,जब तब कांपे पग मेरा, अग्निपथ पर चलता हूं। गिर कर ही उठने वाले, एक दिन ऐसा उठते हैं, बनते फिर आदर्श सभी के, सबको प्रेरित करते हैं। तुम भी आ जाओ इस रथ में, क्यों बैठे यूं मायूस से, छोड़ो साद दृढ़ मन कर, मिला

यूं न मिलती मंजिल ऐसे Read More »

हूं सुन्दर चिकनी चिकनी

कल मैंने श्रीमती जी और छिपकली के बीच संवाद होते देखा। उनके बीच हुए संवाद को एक हास्य कविता के रूप में आपके समक्ष पेश कर रहा हूं, उम्मीद है आपको जरूर पसंद आएगी… छिपकली कहती है… कहती नहीं, चुपचाप तो हूं मैं, फिर क्यों मुझसे डरती हो, कहती खुद को तुम ठकुराईन, फिर छिप

हूं सुन्दर चिकनी चिकनी Read More »

Scroll to Top