स्मृति रूपी प्राण सुकृति की

ओ प्रिये! हर श्वास में मेरी, तुम ही तो बसी हो। हर निःश्वास में पुकारूँ तुझे, हर प्रश्वास में बातें हो तुझसे, बातें न हो पाई आज प्रत्यक्ष, उदास न हो तुम, जल्द आऊंगा तुम्हारे समक्ष, असीमित बातें होंगी, असीमित यादें होंगी। हृदय मेरा, स्पन्दन करता रहेगा तब तक, स्मृति रूपी प्राण सुकृति की,  संचरण […]

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तुम बिन, मैं व्यर्थ

 मैं शब्द, तुम मेरा अर्थ, तुम बिन, मैं व्यर्थ। तुम कारण, मैं ज्ञात, कारण बिना, कार्य अज्ञात। कार्य मैं, तुम कर्ता, संज्ञान मैं, तुम धर्ता। व्यक्त मैं, तुम तदर्थ, तुम बिन, मैं व्यर्थ। मैं चक्षु, तुम दृश्य, मैं रसना, तुम रस्य, मैं घ्राण, तुम सुगंध, मैं चर्म, तुम त्वच्य। मैं प्रारूप, तुम सुकृत, तुम अनादि,

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बातें जुबां पे, क्यूं आती नहीं हैं…?

बातें जुबां पे, क्यूं आती नहीं हैं, दिल बोले जितना, बताती नहीं हैं, कैसे करुं मैं, बयां दिल की बातें, एहसास भी अब, जताती नहीं हैं। दिल में बसी है, ये सूरत तुम्हारी, मन में रमी है, ये मूरत तुम्हारी, आंखें करुं बंद, जब मिलना हो तुमसे, बातें हो जाती, हमारी तुम्हारी। समझ गए सब,

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सिद्ध योगी

सावन का महीना आने वाला है। शिव जी के युवा भक्तों को बताना चाहूंगा कि भगवान शिव एक परम् सिद्ध योगी थे। कोई भी सिद्ध योगी नशा (भांग, गांजा, मदिरा आदि) का सेवन कर सिद्धियां प्राप्त नहीं कर सकता। शिव जी का जो नशेड़ियों वाला रूप हम देखते और समझते आ रहे हैं, वास्तव में

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बोल कन्हैया जो जी चाहे

क्यों री राधा, फिर एक बार तूने, धड़कनों को मेरी, बेकाबू क्यूं किया? सुन… ये धड़कन, घुमड़े जैसे बदरा, काली घटा केशों के, छेड़े है राग नया मल्हार, चाहे… हो जाए बारिश, तरसे प्यासा मन मेरा। नयनों को मेरे थोड़ा, अब कर लेने दो आराम, नयनों को तेरे ये, देखें यूं बेलगाम। कजरा ने भी

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चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 1)

अरे नंदू, काम पर नहीं गया आज? क्यों? तबियत ठीक नहीं है क्या? मम्मी हैं घर पर? पापा ऑफिस चले गए? मेरे पड़ोस में रहने वाली सरिता आंटी ने एकाएक इतने सारे सवाल पूछ दिए मुझे मेरे घर के बाहर अकेला बैठा हुआ देखकर। मैंने जवाब में बस इतना ही कहा – नहीं आंटी, तबियत

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चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 2)

चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 1) से आगे … शाम के 4 बज रहे थे, और हम अपने गंतव्य स्टेशन वाराणसी पहुंचने वाले थे।  चंदा… इधर आकर देखो… वो देखो, खिड़की के उस तरफ… वो, वहां पर। है ना… दिखा तुम्हे?  नंदू मुझसे ट्रेन की खिड़की के बाहर इशारे कर कुछ दिखाने की कोशिश कर

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चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 3)

चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 2) से आगे… कहानी शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 👉🏻 (चंदा कहानी सीरीज भाग – 1) हम वाराणसी स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नं 1 की तरफ चल दिए जहां पापा के ऑफिस से कोई रिसीव करने आने वाले थे।  जय हिन्द सर, नमस्ते मैडम। सर, सफर कैसा रहा?  जय

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चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 4)

चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 3) से आगे… कहानी शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 👉🏻 (चंदा कहानी सीरीज भाग – 1) नंदू… उठो बेटा। सुबह के 9 बज चुके हैं। मम्मी ने दरवाजा खटखटाया और फिर कहा… उठ जाओ बेटा। हां मम्मी, उठ गया अब तो (दरवाजा खोलकर मैंने कहा)। नंदू, पापा तो

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चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 5)

चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 4) से आगे… कहानी शुरू से पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 👉🏻 (चंदा कहानी सीरीज भाग – 1) अरे वाह, ये बहुत अच्छी बात है। संक्रांति का दिन भी बहुत शुभ है। तो फिर एक काम करते हैं, मैं अपने ऑफिस स्टाफ को आमंत्रित करता हूं, त्योहार में थोड़ी रौनक

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