किताबों के पन्नों में,
खो चुका हूं बचपन,
कब करूंगा एन्जॉय,
कैसी है ये उलझन।
सोचा कि जब,
पास होगा बारह,
खूब करूंगा एन्जॉय,
हर रात बजेंगे बारह।
आ गया हूं कॉलेज,
न रहा मैं बालक,
आया मजा अब कितना,
न टोकेंगे पालक।
टूटा सपना, जब फिर से,
कहती मम्मी न कर ये,
पढ़ ले और दो चार साल,
फिर करना खूब धमाल।
कहते पापा कि पड़ी है,
जिंदगी तेरी पूरी,
कर ले मेहनत और थोड़ी,
होंगे ख्वाहिश तब पूरी।
मैं कहता था तब ये,
तो एन्जॉय कब करेंगे,
गवां दिया नादानी,
अब क्या गवाऊं जवानी।
दुखा के दिल सबका,
रोके चला गया मैं,
पापा चुप बैठ गए,
मम्मी भी गुमशुम थी।
भैया आए, मुझे समझाए,
होता है ये एन्जॉय,
दुनिया में जो अपने हैं,
उनके जो सपने हैं,
करते चलो वो पूरा,
जॉय ना हो अधूरा।
पढ़ना मजे से,
खेलना मजे से,
शरारतें मजे की,
आदतें मजे की,
नाज़ करते पालक,
मानित होता बालक।
कॉलेज की पढ़ाई में मजा है,
दोस्तों से लड़ाई में मजा है,
टीचर की डांट मजे की,
पापा की बात मजे की,
खूब किया फिर पढ़ाई,
मिली बहुत वाहवाई।
संवारा भविष्य खुद का,
संवर गया हम सबका
बदला जब सोच मैंने,
करने लगा बस एन्जॉय,
इस पल भी एन्जॉय,
उस पल भी एन्जॉय,
हर पल बस एन्जॉय,
एन्जॉय ही एन्जॉय…
Well said ☺ 👏chachji
Thank you 😊