हिंदी कविताएं

एन्जॉय ही एन्जॉय

किताबों के पन्नों में, खो चुका हूं बचपन, कब करूंगा एन्जॉय, कैसी है ये उलझन। सोचा कि जब, पास होगा बारह, खूब करूंगा एन्जॉय, हर रात बजेंगे बारह। आ गया हूं कॉलेज, न रहा मैं बालक, आया मजा अब कितना, न टोकेंगे पालक। टूटा सपना, जब फिर से, कहती मम्मी न कर ये, पढ़ ले […]

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फिर भी ये मलाल क्यों?

यूं गुमशुम सा मैं, न था कभी, हूं आज बेबस, न था कभी, काश कि जीता, जी भरके मैं, न होता ऐसा, न था कभी। क्यूं मैंने, व्यर्थ किया, फ़ुरसत के वो पल, जिनपर था हक अपनों का, फिर न मिले वो कल। सोच मेरी थी इस पल में, कर दूं दो और काज, कल

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दो पतंग

कि बन पतंग, उड़ जाऊं मैं, खुले गगन के तले, देना ढील तुम हौले हौले, अपनी उंगलियों के तले। छू लेने दो, आसमा है पास, मन में कसक है जगी, लगे ये कितना खुशनुमा, ज़िन्दगी है यहीं। पड़े जो बूंदे बारिश की, लगे छू लूं इन बादलों को, बांध के पिया, प्रेम की डोर, कर

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यूं न मिलती मंजिल ऐसे

गिरता हूं, उठता हूं, गिर गिर कर फिर उठता हूं,जब तब कांपे पग मेरा, अग्निपथ पर चलता हूं। गिर कर ही उठने वाले, एक दिन ऐसा उठते हैं, बनते फिर आदर्श सभी के, सबको प्रेरित करते हैं। तुम भी आ जाओ इस रथ में, क्यों बैठे यूं मायूस से, छोड़ो साद दृढ़ मन कर, मिला

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हूं सुन्दर चिकनी चिकनी

कल मैंने श्रीमती जी और छिपकली के बीच संवाद होते देखा। उनके बीच हुए संवाद को एक हास्य कविता के रूप में आपके समक्ष पेश कर रहा हूं, उम्मीद है आपको जरूर पसंद आएगी… छिपकली कहती है… कहती नहीं, चुपचाप तो हूं मैं, फिर क्यों मुझसे डरती हो, कहती खुद को तुम ठकुराईन, फिर छिप

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दो चिड़िया

हूं बेसब्र, कब सुबह फिर होगी, कब बीते रात, कब चहचहाहट होगी, बन चिड़िया चल मेरे, भर दो फिर नव रंग, जैसे खेला कल था, फिर खेलें हम संग। दो बहनों ने कैसे, बदले मेरे रूप, कभी बनाई गुड़िया, कभी बनाया भूप, कभी हंसाया मुझको, सजाके हर रोज, कभी बनाया बंदर, हंसने लगे सब लोग।

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आ गया जैसे कान्हा

खिलखिलाया फिर एक बार, दिल से बच्चा, संग तेरे, आ गया जैसे कान्हा, बन बच्चा, जब घर मेरे। है प्रार्थना, कान्हा से, बस मुस्काए हर पल तू, दिल की गहराई से, हैप्पी बर्थडे टू यू।

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भगवान मिल गए

जब भी कभी, जो मन में चाहा, कहता… पर कह न पाया, समझ गए उस अनकहे को, बिन मांगे ही सब कुछ पाया। जब भी कभी, मेरा मन घबराया, जताता… पर जता न पाया, बंधा गए हिम्मत फिर से, कह गए वो, जो मन को भाया। न जाने कैसे..? चल जाता है पता आपको, जो

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दिल से दुआ है

पल पल में तू मुस्काए, दूजे पल फिर रूठ जाए, फूलों की बगिया में बैठी, कैसे अपना मुंह फुलाए। जिद थी कि गोदी में लो, या फिर लाकर टॉफी दो, मिला जब तुझको 5 रुपया, बन गई तू प्यारी सी गुड़िया। साथ पढ़ते, साथ खेलते, एक दूजे को खूब सताते, खेल खेल में रूठ जाते,

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हौसलों की उड़ानों से

गोद में उस दिन तुझको जब, लेकर अपने सीने से लगाया, पूरी हो गई आरज़ू मेरी, तेरे माथे को जब सहलाया। मुस्काते देखा जब तूने, अपनी बंद आंखों से, लगा यूं कि बोल रही कुछ, अपने उन्मुक्त अरमानों से। हर पल दी इक नई खुशी, अपनी मासूम अदाओं से, नन्हे कदम, तुतलाती बोली, इजाद कर

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