पारिवारिक कविताएं

मन मीत सखा

उंगली पकड़कर मेरी, ले जाते अपने संग, जीवन के हर मोड़ पर, भर देते एक नई उमंग। सुनियोजित, सुकुमार ज्येष्ठ, हैं वो परम् सुहृदय श्रेष्ठ, चारों तरफ फैलाया सौरभ, बढ़ गया है कुल का गौरव। दृढ़ निश्चयी, बन आदर्श, सींचे मन, बन प्रेम कलश, दिखा के इक राह नयी, वंचित कर हर एक प्रकश। भ्राता […]

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दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर।

दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर, शत सहस्र पर, थमे नहीं यह, कोटि वंदन, वंदना कर… दीप प्रज्वलित, करते रहें हम, नाम का तेरे, हरवर्ष ऐ गुरुवर। गीत ऐसा, लिख दिया है, हम सदा, गाते रहेंगे, स्वार्थ अपना, भूलकर सब, राष्ट्रधुन बस, गाते चलेंगे। सीख ऐसी, दी है हमको, हम

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ओ किशन! कहां छुपे हो?

होली तो एक बहाना है, तुझे रंग लगाने का, अपने अंदर के नटखट, कान्हा को जगाने का, घट घट देखूं राह तेरी, दर्शन को तरसे नैन हृत मन अगन ऐसी लगी मीरा मैं जोगन बनी। अब तो अवसर आ गया, छूने तेरे गालों को, राधा बन झूमें मन, प्रेम रंग लगाने को। ओ किशन! कहां

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हो उदास, मन हतोत्साहित

हो उदास, मन हतोत्साहित, जीवन लगे दूभर कण्टित, चाह न हो, कुछ भी जीवन में, खो जाएं जब, अंधियारे वन में। पाठ करो तुम, गीत मनोहर, गान करो तुम, गीत सरोवर, श्रेष्ठ गीत ये कृष्णमुखी, करे सफल, सर्वस्व सुखी। अंधियारे वन में जलकर, मार्ग दिखाए, दीप उज्ज्वल, उमंग भर दे, जीवंत कर दे, कण्टक, कंकड़,

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तुम बिन, मैं व्यर्थ

 मैं शब्द, तुम मेरा अर्थ, तुम बिन, मैं व्यर्थ। तुम कारण, मैं ज्ञात, कारण बिना, कार्य अज्ञात। कार्य मैं, तुम कर्ता, संज्ञान मैं, तुम धर्ता। व्यक्त मैं, तुम तदर्थ, तुम बिन, मैं व्यर्थ। मैं चक्षु, तुम दृश्य, मैं रसना, तुम रस्य, मैं घ्राण, तुम सुगंध, मैं चर्म, तुम त्वच्य। मैं प्रारूप, तुम सुकृत, तुम अनादि,

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बोल कन्हैया जो जी चाहे

क्यों री राधा, फिर एक बार तूने, धड़कनों को मेरी, बेकाबू क्यूं किया? सुन… ये धड़कन, घुमड़े जैसे बदरा, काली घटा केशों के, छेड़े है राग नया मल्हार, चाहे… हो जाए बारिश, तरसे प्यासा मन मेरा। नयनों को मेरे थोड़ा, अब कर लेने दो आराम, नयनों को तेरे ये, देखें यूं बेलगाम। कजरा ने भी

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एन्जॉय ही एन्जॉय

किताबों के पन्नों में, खो चुका हूं बचपन, कब करूंगा एन्जॉय, कैसी है ये उलझन। सोचा कि जब, पास होगा बारह, खूब करूंगा एन्जॉय, हर रात बजेंगे बारह। आ गया हूं कॉलेज, न रहा मैं बालक, आया मजा अब कितना, न टोकेंगे पालक। टूटा सपना, जब फिर से, कहती मम्मी न कर ये, पढ़ ले

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फिर भी ये मलाल क्यों?

यूं गुमशुम सा मैं, न था कभी, हूं आज बेबस, न था कभी, काश कि जीता, जी भरके मैं, न होता ऐसा, न था कभी। क्यूं मैंने, व्यर्थ किया, फ़ुरसत के वो पल, जिनपर था हक अपनों का, फिर न मिले वो कल। सोच मेरी थी इस पल में, कर दूं दो और काज, कल

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दो चिड़िया

हूं बेसब्र, कब सुबह फिर होगी, कब बीते रात, कब चहचहाहट होगी, बन चिड़िया चल मेरे, भर दो फिर नव रंग, जैसे खेला कल था, फिर खेलें हम संग। दो बहनों ने कैसे, बदले मेरे रूप, कभी बनाई गुड़िया, कभी बनाया भूप, कभी हंसाया मुझको, सजाके हर रोज, कभी बनाया बंदर, हंसने लगे सब लोग।

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आ गया जैसे कान्हा

खिलखिलाया फिर एक बार, दिल से बच्चा, संग तेरे, आ गया जैसे कान्हा, बन बच्चा, जब घर मेरे। है प्रार्थना, कान्हा से, बस मुस्काए हर पल तू, दिल की गहराई से, हैप्पी बर्थडे टू यू।

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