कि बन पतंग, उड़ जाऊं मैं,
खुले गगन के तले,
देना ढील तुम हौले हौले,
अपनी उंगलियों के तले।
छू लेने दो, आसमा है पास,
मन में कसक है जगी,
लगे ये कितना खुशनुमा,
ज़िन्दगी है यहीं।
पड़े जो बूंदे बारिश की,
लगे छू लूं इन बादलों को,
बांध के पिया, प्रेम की डोर,
कर मुझे भी, उस पतंग की ओर।
कितना सुहाना मौसम है,
चलो तुम भी मेरे संग,
डाले बांहों में बांह मेरी,
उड़ चले, बन दो पतंग।