हूं सुन्दर चिकनी चिकनी

कल मैंने श्रीमती जी और छिपकली के बीच संवाद होते देखा। उनके बीच हुए संवाद को एक हास्य कविता के रूप में आपके समक्ष पेश कर रहा हूं, उम्मीद है आपको जरूर पसंद आएगी…

छिपकली कहती है…

कहती नहीं, चुपचाप तो हूं मैं,
फिर क्यों मुझसे डरती हो,
कहती खुद को तुम ठकुराईन,
फिर छिप के, क्यों रहती हो।

हो सामना आज यहां फिर,
देखें किसमें कितना दम,
पीछे मेरे बनती निर्भय,
सामने फिर क्यों निकले दम।

देखा नहीं, मैं खुद डरती हूं,
जब तू सामने आती है,
जल्दी से भग जाती हूं,
और पीछे छिप जाती हूं।

मत बन तू बड़ी सयानी,
ये जो तेरा लेखा है,
न कह, तू मुझे डरावनी,
सीसे में खुद को देखा है।

चलती बड़ी मटकते मटकते,
और कभी लट लटकाती,
आ जाऊंगी पैर के नीचे,
देख के क्यों न तू चलती।

मुझको घूरती गुस्से से,
कहती खुद को कमसिन कली,
हूं सुंदर चिकनी चिकनी,
भले कह तू मुझे छिपकली।

2 thoughts on “हूं सुन्दर चिकनी चिकनी”

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