चंदा (कहानी सीरीज, भाग – 3)

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हम वाराणसी स्टेशन पर प्लेटफॉर्म नं 1 की तरफ चल दिए जहां पापा के ऑफिस से कोई रिसीव करने आने वाले थे। 
जय हिन्द सर, नमस्ते मैडम। सर, सफर कैसा रहा? 
जय हिन्द रमेश। सफर काफी अच्छा रहा। और तुम बताओ, घर में सब ठीक हैं? माताजी की तबियत ठीक है?
जी सर, सब कुशल से हैं। ये नंदकिशोर है न? कितना बड़ा हो गया… बचपन में देखा था। 
हां ये नंदकिशोर ही है। पापा ने जवाब दिया।
क्या कर रहे हो नंदकिशोर आजकल? 
जी, वहां चित्रकूट में एक छोटी सी गारमेंट्स फैक्ट्री है, वहां मैं डिजाइनर था।
अच्छा, बहुत बढ़िया। (रमेश अंकल ने मुस्कुरा कर कहा)
क्यों रमेश, वो जो कल रात तुम किसी लड़की का जिक्र कर रहे थे फोन पर, ट्रेन में नेटवर्क सही न होने की वजह से बात पूरी नहीं हो पाई थी। क्या नाम था उसका…? चंदा, हां… उसके केस की फाइल ले आए हो न साथ में?
चंदा नाम सुनते ही जैसे मेरे शरीर में बिजली दौड़ गई और मैं स्तब्ध सा रह गया। 
जी सर। (रमेश अंकल के जवाब ने मुझे वापस होश में लाया)। ठीक है, मुझे देते जाना, रात में थोड़ा देख लूंगा।  अच्छा रमेश अब तुम जाओ। हम कल मिलते हैं। ठीक है, जय हिन्द सर। 
रात्रि भोजन तैयार था, हम सब सफर की वजह से थके हुए थे। भोजन कर अपने अपने कमरे में चले गए। 
मेरे दिमाग में तब से बस चंदा वाली फाइल ही घूम रही है। ये घर वाराणसी शहर से कुछ दूर है जहां कोई शोर शराबा नहीं है। कुछ और सी.बी.आई. के अधिकारी निवास भी बने हुए हैं। पापा सी.बी.आई. में चीफ इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर के पद पर प्रोमोट होकर आए हैं। 
सर्द रात है और पूर्णिमा की वजह से रात  चांदनी की सफेद चादर ओढ़े हुए है। रात के करीब 2 बजे हैं। घर से बाहर का नजारा बिस्तर में लेटे हुए भी खिड़की के बाहर साफ दिखाई दे रहा है। 
सोच ही रहा था कि अचानक ऐसा लगा जैसे कोई खिड़की से देख रहा हो। मैं झट से उठकर बैठ गया, पर कोई नहीं दिखा। शायद मेरा वहम होगा, पर जो हल्की सी नींद आ रही थी वो छू मंतर हो गई। मैं बिस्तर से उतरकर खिड़की के पास जाकर बैठ गया और चांद को निहारने लगा। चांदनी रात, सर्द हवाएं, टिमटिमाते तारे… सब कितना प्यारा लग रहा है। 
हाथ मेरा मेज पर ही था। हाथों में थोड़ी गर्माहट महसूस हुई, फिर लगा जैसे किसी ने उठाकर अपने हाथों में ले लिया हो। मैंने कहा… चंदा, क्या तुम हो? बोलो न…
हां नंदू, मैं ही हूं। तुम्हारी चंदा।
आज इतनी देर क्यों लगा दी। तुम्हारी ही कमी महसूस हो रही थी। वैसे भी, तुम्हारे बिना नींद कहां आती मुझे। देखो, बाहर कितना अच्छा लग रहा है न? 
हां नंदू, बेहद खूबसूरत और बेहद प्यारा। अच्छा ये बताओ, कल तुम चलोगी मेरे साथ?
कहां नंदू? 
गंगा किनारे, वहीं जहां हम पहली बार मिले थे। चंदा ने मुस्कुराकर जवाब दिया, ठीक है, चलूंगी। लेकिन पहले तुम सो तो जाओ चंदू। आओ, तुम्हारे बालों को सहला दूं, जल्दी नींद आ जाएगी। 
नंदू… उठो बेटा। सुबह के 9 बज चुके हैं। मम्मी ने दरवाजा खटखटाया और फिर कहा… उठ जाओ बेटा अब।

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