बोल कन्हैया जो जी चाहे

क्यों री राधा,
फिर एक बार तूने,
धड़कनों को मेरी,
बेकाबू क्यूं किया?

सुन… ये धड़कन,
घुमड़े जैसे बदरा,
काली घटा केशों के,
छेड़े है राग नया मल्हार,
चाहे… हो जाए बारिश,
तरसे प्यासा मन मेरा।

नयनों को मेरे थोड़ा,
अब कर लेने दो आराम,
नयनों को तेरे ये,
देखें यूं बेलगाम।

कजरा ने भी न छोड़ी,
कोई कसर उकसाने में,
बुला रहें कैसे मुझको,
मिल के उस किनारे में।

दरिया बन तेरे अखियन,
सींचे इक रोम रोम,
फिर चाहे, फिर देखे
तृप्त क्यूं न होता मन।

मैं नहीं, बांसुरी मेरी,
पुकारे नाम तेरा हर पल,
कहे ये, आओ मिलने,
चाहे आज हो या कल,
तू नादान,
दौड़ी चली आती है,
बंशी तो चुप हो जाती,
नाम मेरा लगाती है।

अच्छा चल आ, बैठ अब,
आ गई तो सुन बात मेरी,
अब जाने की न कहना,
माखन तेरे प्रेम का,
चाहे ये फिर चखना।

बोली मुस्काती राधा प्यारी,
चाहे ये, या तू चाहे,
काहे डारे दोष इस पर,
बोल कन्हैया जो जी चाहे।

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