मैं अब भी तो अकेला हूं

मैं तब भी तो अकेला था,

मैं अब भी तो अकेला हूं।

थे जब दिन खेलने के,

दिखाते अपनी बाल शरारतें,

इतराते, अठखेलियां करते,

हंसते बचपन के बीच,

मैं तब भी तो अकेला था,

मैं अब भी तो अकेला हूं।

यौवन के दहलीज पर,

रखे थे जब कदम अपने,

अदम्य साहस की हुंकार से,

सब कुछ करके दिखलाने,

हर रंग में मिलता जाता था,

हर संग में खिल जाता था,

पाने हर लक्ष्य को, बढ़ा अकेला,

मैं तब भी तो अकेला था,

मैं अब भी तो अकेला हूं।

समय का चक्र कुछ आगे बढ़ा,

पैदल चला, कभी दौड़ा,

यूं ही फिर कुछ भरा घड़ा,

संग मिले, कुछ पल के,

बिछड़ गए, कुछ पल में,

जीवन के इस मेले में,

मैं तब भी तो अकेला था,

मैं अब भी तो अकेला हूं।

अब तो बस लगे है यूं,

हम- तुम जैसा कुछ नहीं है,

तुम हो और मैं भी हूं,

तुम तुम में खो कर चले गई,

मैं मैं का होकर रह गया,

मैं तब भी तो अकेला था,

मैं अब भी तो अकेला हूं।

1 thought on “मैं अब भी तो अकेला हूं”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top