दो चिड़िया

हूं बेसब्र, कब सुबह फिर होगी,
कब बीते रात, कब चहचहाहट होगी,
बन चिड़िया चल मेरे, भर दो फिर नव रंग,
जैसे खेला कल था, फिर खेलें हम संग।

दो बहनों ने कैसे, बदले मेरे रूप,
कभी बनाई गुड़िया, कभी बनाया भूप,
कभी हंसाया मुझको, सजाके हर रोज,
कभी बनाया बंदर, हंसने लगे सब लोग।

पहनाया चुनरी मलमल का,
पुरो के मोती और कुंदन,
महकाया मेरा बचपन,
मम प्रेम सुधा, बन चंदन।

हूं छोटी, अल्फ़ाज़ नहीं जो,
कह दूं ये सब बातें,
लगे चांदनी, अमावश में भी,
कितनी सुन्दर रातें।

स्वाति और वंशिका ऐसे,
हों प्यारी, दो चिड़िया जैसे,
हर पल हम रहते ऐसे,
जन्मों का हो रिश्ता जैसे।

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