यूं न मिलती मंजिल ऐसे

गिरता हूं, उठता हूं,
गिर गिर कर फिर उठता हूं,
जब तब कांपे पग मेरा,
अग्निपथ पर चलता हूं।

गिर कर ही उठने वाले,
एक दिन ऐसा उठते हैं,
बनते फिर आदर्श सभी के,
सबको प्रेरित करते हैं।

तुम भी आ जाओ इस रथ में,
क्यों बैठे यूं मायूस से,
छोड़ो साद दृढ़ मन कर,
मिला लो हाथ प्रयास से।

सीखा है मैंने तो बस,
जीवन की है रीत यही,
यूं न मिलती मंजिल ऐसे
राहों की है नीत यही।

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