मां मुझे तू, फिर सहला दे,
ममता का फिर नीर पिला दे।
रोया नहीं हूं, अरसों से मां,
सोया नहीं हूं, बरसों से मां,
गले लगाकर, दुःख भुला दे,
देकर थपकी, फिर सुला दे।
छांव तेरे आंचल की जब,
छा जाये मेरे माथे से,
तपन मन की धीरे धीरे,
छलके मेरी आंखों से।
मन कहता है, फिर मत जाना,
मुंह से क्यों न दोहराती तू,
चाहती है, रहूं तेरे साथ,
फिर क्यों न सबको समझाती तू।
बनकर इतना कठोर अब तक,
मेरे भविष्य का सोचकर,
बुन दिया रेशम की चादर,
अपने आज को नोचकर।
बन गया हूं अब मैं समर्थ,
तेरे आशीष के नींव पर,
ला न सकूंगा अतीत दोबारा,
चाहूं जितना भी जीत कर।
बस चाहत है अब मेरी ये,
रहूं सदा तेरे पास,
दूं तुझे वो हर सुख,
बनकर तेरे चरणों का दास।