पारिवारिक कविताएं

भगवान मिल गए

जब भी कभी, जो मन में चाहा, कहता… पर कह न पाया, समझ गए उस अनकहे को, बिन मांगे ही सब कुछ पाया। जब भी कभी, मेरा मन घबराया, जताता… पर जता न पाया, बंधा गए हिम्मत फिर से, कह गए वो, जो मन को भाया। न जाने कैसे..? चल जाता है पता आपको, जो […]

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दिल से दुआ है

पल पल में तू मुस्काए, दूजे पल फिर रूठ जाए, फूलों की बगिया में बैठी, कैसे अपना मुंह फुलाए। जिद थी कि गोदी में लो, या फिर लाकर टॉफी दो, मिला जब तुझको 5 रुपया, बन गई तू प्यारी सी गुड़िया। साथ पढ़ते, साथ खेलते, एक दूजे को खूब सताते, खेल खेल में रूठ जाते,

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हौसलों की उड़ानों से

गोद में उस दिन तुझको जब, लेकर अपने सीने से लगाया, पूरी हो गई आरज़ू मेरी, तेरे माथे को जब सहलाया। मुस्काते देखा जब तूने, अपनी बंद आंखों से, लगा यूं कि बोल रही कुछ, अपने उन्मुक्त अरमानों से। हर पल दी इक नई खुशी, अपनी मासूम अदाओं से, नन्हे कदम, तुतलाती बोली, इजाद कर

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बनकर तेरे चरणों का दास

मां मुझे तू, फिर सहला दे, ममता का फिर नीर पिला दे। रोया नहीं हूं, अरसों से मां, सोया नहीं हूं, बरसों से मां, गले लगाकर, दुःख भुला दे, देकर थपकी, फिर सुला दे। छांव तेरे आंचल की जब, छा जाये मेरे माथे से, तपन मन की धीरे धीरे, छलके मेरी आंखों से। मन कहता

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